अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा – बशीर बद्र

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अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा

तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा

न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आएगा

मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रास्ते से आएगा

तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बा’द ये मौसम बहुत सताएगा

3 thoughts on “अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा – बशीर बद्र”

  1. हर एक मोड पर असर है तेरी चाहत की,
    जो होगा बदनसीब मंझिलो को पाएगा।
    “नजर”!

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