जावेद अख़्तर

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दर्द अपनाता है पराए कौन

दर्द अपनाता है पराए कौन
कौन सुनता है और सुनाए कौन

कौन दोहराए वो पुरानी बात
ग़म अभी सोया है जगाए कौन

वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं
कौन दुख झेले आज़माए कौन

अब सुकूँ है तो भूलने में है
लेकिन उस शख़्स को भुलाए कौन

आज फिर दिल है कुछ उदास उदास
देखिये आज याद आए कौन.

तमन्‍ना फिर मचल जाए 

तमन्‍ना फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
यह मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

मुझे गम है कि मैने जिन्‍दगी में कुछ नहीं पाया
ये ग़म दिल से निकल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

ये दुनिया भर के झगड़े, घर के किस्‍से, काम की बातें
बला हर एक टल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

जाते जाते वो मुझे

जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया

उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया

सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई
और मुझ को एक कश्ती बादबानी दे गया

ख़ैर मैं प्यासा रहा पर उस ने इतना तो किया
मेरी पलकों की कतारों को वो पानी दे गया

यह विश्व-प्रसिद्द शायर दाग़, ज़ौक़, मोमिन, मीर, ग़ालिब, ज़फर और इक़बाल की ग़ज़लों का चयन-संकलन किया गया है। नूर-ए-ग़ज़ल मशहूर शायरों की नुमाइंदा शायरी इस संकलन का बुनियादी काम उर्दू शायरी के शब्द और अर्थ की ख़ूबसूरती, रंग-रस, संगीत, स्पर्श और ज़ायके को अधिकतम पाठकों तक पहुँचाना है। उम्मीद है कि नूर-ए-ग़ज़ल देवनागरी लिपी में अपनी महबूब शायरी पढ़ने वालों में मक़्बूल होगी।

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